व्यास गद्दी पर हमला: आज के हिंदू समाज को आत्ममंथन की ज़रूरत है?

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

व्यास गद्दी, सनातन परंपरा का वो उच्चतम स्थान है, जहाँ बैठकर रामायण, भागवत, वेदांत और उपनिषद जैसे अमर ग्रंथों की व्याख्या होती है।
इस गद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति किसी जाति, गोत्र या वर्ग से नहीं — ज्ञान, तप और साधना से पहचाना जाता है।

इसराइल ने युद्धविराम प्रस्ताव को मंज़ूरी दी, ईरान बोला- शर्तों पर होगा अमल

व्यास गद्दी पर हमला: हमारी आत्मा घायल है

हाल ही में एक कथावाचक संत पर हुए हमले ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम सच में धर्म का पालन कर रहे हैं या उसका ढोंग भर कर रहे हैं?

अगर महर्षि वाल्मीकि और महर्षि व्यास आज होते, तो इस दृश्य को देखकर शर्म से सिर झुका लेते। जो समाज संतों का अपमान करता है, वह कभी धार्मिक राष्ट्र बनने का दावा नहीं कर सकता।

हिंदू राष्ट्र की बात करने वालों से सवाल

जो लोग दिन-रात “हिंदू राष्ट्र” की बात करते हैं, क्या वे बता सकते हैं कि धर्म का मतलब सिर्फ सत्ता है या संवेदना भी?
जब एक कथावाचक को जाति के आधार पर पीटा जाता है, तो वह केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि संपूर्ण संत परंपरा का अपमान होता है।

चुप्पी और समर्थन — दोनों अधर्म हैं

सबसे ज़्यादा दुखद बात यह है कि समाज का एक बड़ा वर्ग या तो इस पर चुप है या पीड़ित की बजाय हमलावरों का समर्थन कर रहा है।
क्या यह वही सनातन धर्म है, जो “वसुधैव कुटुम्बकम्” सिखाता है?

आत्ममंथन का समय

हमें तय करना होगा कि हम एक धार्मिक समाज बनना चाहते हैं या एक जातिगत अहंकार में डूबा भीड़तंत्र। धर्म को राजनीति और जातिवाद से बचाना होगा — नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब संत भी मंच छोड़ देंगे और फिर ज्ञान नहीं, केवल नफरत का प्रवचन होगा। धर्म पर हमला सिर्फ हथियारों से नहीं होता — चुप्पी से भी होता है।

अगर हम वाकई धर्म और संत परंपरा के सच्चे उत्तराधिकारी हैं, तो ऐसे हमलों की सिर्फ निंदा नहीं, प्रतिक्रिया भी ज़रूरी है।

“किताब दी नहीं, फरसा पकड़ाया!” – प्रो.बोले, संघ की पाठशाला का असली पाठ

Related posts